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होलिका पर्व (होली) Holi

होली का पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली एक सामाजिक पर्व है। यह रंगों का त्यौहार है। इस पर्व को सब वर्गों के लोग आपस का भेदभाव मिटाकर बड़े उत्साह से मनाते हैं। इस दिन होली पूजन के बाद शाम को होली का दहन किया जाता है। कस्बो और गाँवों में होली के पन्द्रह बीस दिन पूर्व ही गोवर की गुलेरियाँ बनाना प्रारम्भ हो जाता है इनके बीच में बनाते समय छेद कर दिया जाता है इनके सूखने पर रस्सियो में पिरोकर मालाएँ जाती है। होलिका दहन के दो-तीन दिन पहले से खुले मैदानो में लक्कड-कण्डे दहन के लिए रखे जाते है। यह मालाये वहीं रखी जाती है।

पूजा विधि-विधान :-

होली के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर पहले हनुमानजी, भैरोंजी आदि देवताओं की पूजा करे। फिर उन पर जल, रोली, माला, चावल, फूल, प्रसार, गुलाल, चंदन, नारियल आदि चढ़ावे। दीपकं से आरती करके दंडवत करें। फिर सबके रोली से तिलंक लगा दें और जिन देवताओं को आप मानते हों उनकी पूजा करें। फिर थोड़े से तेल को सब बच्चों का हाथ लगाकर किसी चौराहे पर भैरों के नाम से एक ईंट पर चढ़ा देवें। यदि कोई लड़का हो या लड़के के विवाह का उजमन करना हो तो वह होली के दिन उजमन करे। उजमन में एक थाली में 13 जगह 4-4 पूरी और हलवा रखे उन पर अपनी श्रद्धानुसार रुपये कपड़े (साड़ी आदि) तथा 13 गोबर की सुपाड़ी की माला रखें। फिर उन पर हाथ फेरकर अपनी सासुजी को पाँव छूकर देवें। सुपाड़ी की माला अपने घर में ही टांग देवें।
इस दिन अच्छे-अच्छे भोजन, मिठाई, नमकीन आदि पकवान बनावें। फिर थोड़ा-थोड़ा सभी सामान एक थाली में देवताओं के नाम का निकाल कर ब्राह्मणी को दे देवें। भगवान् का भोग लगाकर स्वयं भोजन कर लेवें।

होली की पूजन विधि एवं सामग्री :-

पहले जमीन पर थोडे गोबर और जल से चौका लगा लेवें चौका लगाने के बाद एक सीधी लकड़ी (डंडा) के चारों तरफ गुलरी (बड़ा कुल्ला) की माला लगा देवें। उन मालाओं के आसपास गोबर की ढाल तलवार, खिलौना आदि रख देवें। जो पूजन का समय नियत हो, उस समय जल, मोली, रोली, चावल, फूल, गुलाल, गुड़ आदि से पूजन करने के बाद ढाल, तलवार अपने घर में रख लेवें। चार जेल माला (गूलरी की माला) अपने घर में पितरो, हनुमानजी, शीतलामाता तथा घर के नाम की उठाकर अलग रख देवें। यदि आपके यहां घर में होली न जलती हो तो एक माला, ऊख, पूजा की समस्त सामग्री, कच्चे सूत की कुकड़ी, जल का लोटा, नारियल, बूट (कच्चे चना की डाली) पापड़ आदि सब सामान गांव या शहर की होली जिस स्थान पर जलती हो वहाँ ले जावें। वहाँ जाकर होली का पूजन करें। जेल माला, नारियल आदि चढ़ा देवें। परिक्रमा देवें, पापड़, बूट आदि होली जलने पर भून लेवें और सभी में बांटकर खा लेवे। ऊख घर वापिस ले आवें। यदि घर पर होली जलावें तो गांव या शहर वाली होली में से ही अग्नि लाकर घर ही होली जलावें। फिर घर आकर पुरुष अपने घर की होली पूजन करने के बाद जलावें। घर की होली में अग्नि लगाते ही उस डंडा या लकड़ी को बाहर निकाल लेवें। इस डंडे को भक्त प्रहलाद मानते हैं। स्त्रियाँ होली जलते ही एक घंटी से सात बार जल का अर्घ्य देकर रोली चावल चढ़ावें और होली की सात परिक्रमा लगाये। फिर होली के गीत या बधायें गावें। पुरुष घर की होली में बूंट और जौ की बाल पापड़ आदि भूनकर तथा उन्हें बांटकर खा लेवें होली पूजन के बाद बच्चे तथा पुरुष रोली से तिलक (टीका) लगावें। छोटे अपने सभी बड़ों के पैर छुकर आशीर्वाद लेवें।

नोट :-

जिस लड़की का विवाह जिस साल हुआ हो वह उस साल अपनी ससुराल की जलती हुई होली को न देखे। यदि हो सके तो अपनी मांयके चली जावे।

होली के दिन गए जाने वाला गीत :-

जा सवरियां के संग, रंग में कैसे होली खेलूं री।

कोरे-कोरे कलश भराये, जामै घोरौ है ये रंग ॥

भर पिचकारी सन्मुख मारी, चोली है गई तंग ॥ रंग. ॥

ढोलक बाजै, मजीरा बाजै और बाजै मृदंग,

कान्हाजी की वंशी बाजै, राधाजी के संग ॥ रंग. ॥
लहँगा त्यारो, दूम घुमारौ, चोली है पचरंग,

खसम तुम्हारे बड़े निखट्टू चलौ हमारे संग ॥ रंग. ॥
सालऊ भीज, दुसालऊ भीजै और भीजै पचरंग,

साँवरियाँ कौ का बिगडैगौ, कारी कामर संग।

रंग में कैसे होली खेलूरी, जा सावंरिया के संग ॥

होलिका पर्व कथा :-

इस पर्व का सम्बन्ध भक्त प्रहलाद से है। भारत वर्ष में एक असुर हिरण्यकश्यप राज्य करता था उसके पुत्र का नाम प्रहलाद था प्रहलाद भगवान का परम भक्त था परन्तु उसका पिता भगवान का अपना शत्रु मानता था इस कारण हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के लिए अनेक उपाय किए, पर वह उसे न मार सका। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। हिरण्यकश्यप ने लकड़ियों के ढेर में आग लगवाई और प्रहलाद को होलिका की गोद में देकर अग्नि में प्रवेश करने की आज्ञा दी। होलिका ने अग्नि में प्रवेश किया परन्तु भगवान की कृपा से होलिका जल गई और भक्त प्रहलाद बच गया। तभी से होलिका का दहन किया जाता है।

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