आशा भगोती व्रत आश्विन माघ की कृष्ण पक्ष की अष्टमी से प्रारम्भहोकर आठ दिन तक चलता रहता है। इस व्रत को कुःवारी लड़कियाँ ही करती है।
आशा भगोती व्रत की पूजा कैसे की जाती है :-
इस दिन गोबर से आठ कोने रसोई के पोते, आशा भगोती की कहानी सुन आठों कोनों पर यह चीजें चढ़ाओ-दूध, 8 पैसे (रुपये), 8 रोली के छींटे, 8 मेंहदी के छींटे, 3 काजल की टिक्की दें। एक-एक सुहाली चढ़ाएँ। एक दिया जलायें। एक-एक फल, एक सुहाग पिटारी आखिरी दिन चढ़ायें। 8 दिन तक इसी तरह पूजा करें और आखिरी दिन व्रत करें। व्रत करके आठ सुहाली का बायना निकालें 8 वर्ष तक इसी प्रकार व्रत और पूजा करें और 9वें वर्ष उजमन कर दें। आठ दिन तक आशा भगोती की पूजा करें। नवें में उजमन करें तब उसी प्रकार पूजा करें। 8 सुहाग पिटारी जिसमें सुहाग की सारी चीजें डाल दें। एक सुहाग पिटारी ओर ले लों जो कि सासुजी के पैर छूकर दें। आठ सुहाग पिटारी में 8 सुहाली भी डाल दें। बाद में सुहागन औरतों को खाना खिलाकर आठों को सुहाग पिटारी दें और पैर छूकर दक्षिणा दें। आशा भगोती की पूजा करने के बाद कहानी सुने।
आशा भगोती व्रत की कथा :-
हिमाचल में एक राजा था। उसके दो पुत्रियाँ थीं। उनका नाम गौरा और पार्वती था। एक दिन राजा ने अपनी दोनों पुत्रियों से पूछा-तुम किसके भाग्य का खाती पहनती हों। पार्वती ने कहा-पिताश्री मैं अपने भाग्य का खाती पहनती हूँ, परन्तु गौरा ने कहा- मैं आपके भाग्य का खाती पहनती हूँ। यह सुनकर राजा ने गौरा का विवाह एक राज परिवार के युवक से कर दिया तथा पार्वती का विवाह रास्ते में भिखारी रूप धारण किये शिवजी के साथ कर दिया। जब गौरी की बारात आई तो बारात की बहुत खातिरदारी की परन्तु जब पार्वती की बारात आयी तो कुछ भी नहीं किया। शिवजी पार्वती को लेकर कैलाश पर्वत चल दिए। रास्ते में पार्वतीजी का जहाँ भी पैर पड़ता वहाँ की दून (घास) जल जाती। शिवजी ने ज्योतिषियों से पूछा कि क्या दोष है कि जहाँ भी पार्वतीजी पैर रखती है वहाँ की दूब भस्म हो जाती है। पंडितों ने बताया कि ये अपने मायके जाकर आशा भगोती का व्रत उजम करे तो इसका दोष मिट जायेगा। पंडितों के बताने पर शिवजी और पार्वतीजी अच्छे-अच्छे मूल्यवान वस्त्र धारण कर एवं गहने पहनकर पार्वतीजी के मायके चल दिए। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक रानी के बच्चा होने वाला है। रानी बहुत परेशान थी। यह कष्ट देखकर पार्वतीजो शिवजी से बोली- हे नाथ ! बच्चा होने में बहुत कष्ट होता है, अतः मेरी कोख बाँध दों। शिवजी ने समझाया कि कोख मत बँधवाओ अन्यथा पीछे पछताओगी। कुछ आगे चले तो देखा कि एक घोड़ी के बच्चा हो रहा है उसका भी कष्ट देखकर पार्वती ने अपनी कोख बन्द करने की हठ पकड़ ली। अन्त में निराश होकर शिवजी ने पार्वतीजी की कोख बन्द कर दी। इसके बाद वे आगे की ओर चले। पार्वती की बहन गौरा अपनी ससुराल में बहुत दुःखी थी। इधर पार्वती के अपने मायके पहुँचने पर मायके वालों ने पार्वती को पहचानने से इन्कार कर दिया। जब पार्वती ने अपना नाम बताया तो राजा रानी बहुत खुश हुए। राजा को अपनी कही हुई पुरानी बात याद आ गई।
राजा ने पार्वती से पुनः पूछा कि तू किसके भाग्य का खाती है। पार्वती ने उत्तर दिया मैं अपने भाग्य का खाती हूँ। ऐसा कहकर पार्वती अपनी भाभियों के पास चली गई। वहाँ उसकी भाभियाँ आशा भगोती का उजमन कर रही थीं। यह देखकर पार्वतीजी बोली कि मेरे उजमन की कोई तैयारी नहीं है नहीं तो मैं भी उजमन कर देती। तव भाभियाँ बोली, “तुम्हें क्या कमी है ? तुम शिवजीजी से कहो वह सब तैयारी कर देंगे।” पार्वतीजी ने शिवजी से उजमन करने के लिए सामान लाने को कहा-तब शिवजी ने पार्वती से कहा, “यह अंगूठी (मुद्रिका) ले लो, इससे जो भी माँगोगी वह मिल जायेगा।” स्यक होने है. पार्वतीजी ने उस मुद्रिका से उजमन का सामान माँगा। मुद्रिका ने तुरन्त सभी सामान नौ सुहाग की पिटारी सहित ला दिया। यह सब देखकर पार्वती की भाभियों ने कहा हम तो आठ महीने से उजमन की तैयारी कर रही थीं तब जाकर सामान तैयार कर सर्की है और तुमने थोड़ी-सी देर में ही पूरी तैयारी कर ली। सबने मिलकर व्रत किया और धूमधाम से उजमन किया। शिवजी ने पार्वती से घर चलने को कहा। तब श्वसुर ने शंकरजी को भोजन करने के लिए बुलाया। राजा ने उन्हें सुन्दर-सुन्दर भोजन तथा अनेक प्रकार की मिठाई खाने को दी। यह देखकर सब कहने लगे कि पार्वती को भिखारी के साथ ब्याह दिया था परन्तु वह तो अपने ही भाग्य से राज कर रही है। शंकरजी ने सब रसोई की वस्तुएँ खाते-खाते समाप्त कर दीं। रसोई में थोड़ी-सी पतली सब्जी बची थी। पार्वतीजी ने उसी सब्जी को खाकर पानी पीकर पति के साथ घर को चल दीं। रस्ते में दोनों प्राणी सुस्ताने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठ गए। शंकर भगवान ने पार्वती से पूछा, “तुम क्या खाकर आई तू हो ?” पार्वती बोली जो आपने खाया वही मैंने खाया परन्तु शिवजी हँसने लगे और बोले तुम तो सब्जी और पानी पीकर आयी हो। तो पार्वती बोली, हे नाथ! आप तो अन्तर्यामी है। आपने मेरी सारी पोल खोल दी। अब आगे कोई बात मत खोलना। मैंने हमेशा ससुराल की इज्जत मायके में रखी है और मायके की इज्जत ससुराल में रखी है।” इसके बाद आगे चलने पर जो दूब सूख गई थी वह हरी हो गई। शंकरजी ने सोचा कि पार्वती का दोष तो मिट गया और आगे बढ़ने पर पार्वतीजी ने देखा कि वही रानी कुआँ पूजने जा रही थी। पार्वतीजी ने पूछा कि महाराज यह क्या हो रहा है शिवजी बोले कि यह वही रानी है जो प्रसव पीड़ा झेल रही थी अब इसके लड़का हुआ है, इसलिए कुआँ पूजने जा रही है। पार्वतीजी बोली- महाराज मेरी भी कोख खोल दें। शिवजी बोले अब कैसे खोलूँ। मैंने तो पहले ही कहा था कि कोख मत बँधवाओ लेकिन तुमने जिद्द पकड़ ली। इस पर पार्वतीजी ने हठ पकड़ ली कि मेरी कोख खोलो नहीं तो मैं अभी इसी वक्त अपने प्राण त्याग दूँगी। पार्वतीजी का हठ देखकर शिवजी ने पार्वती के मैल से गणेशजी को बनाया। पार्वतीजी ने बहुत सारे नेकचार किये है। और कुआँ पूजा। पार्वतीजी कहने लगी कि मैं तो सुहाग बादूँगी तो सब जगह शोर मच गया कि पार्वतीजी सुहाग बाँट रही है। जिसको लेना है ले लो। नीची जातियों की स्त्रियाँ तो दौड़-दौड़कर सुहाग ले गयी परन्तु उच्च कुल की स्त्रियों को पहुँचने में देर हो गई। तब शिवजी के कहने पर पार्वती जी ने इन स्त्रियों को नाखूनों से मेंहदी, माँग से सिन्दूर, बिन्दी में से रोली, आँखों में से काजल चीतली अंगुली का छीटा दे दिया और उन्हें सुहाग मिल गया। इस प्रकार पार्वती जी ने सबको सुहाग दिया। हे पार्वती माता कहानी कहने, सुनने वाले सबको अमर सुहाग देना |
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